सच्चा विशवास

Mathew Daniel

17 February, 2023

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अपने विश्वास की जांच करें

2 कुरिन्थियों 13:5 अपने आप को परखो, कि विश्वास में हो कि नहीं; अपने आप को जांचो, क्या तुम अपने विषय में यह नहीं जानते, कि यीशु मसीह तुम में है नहीं तो तुम निकम्मे निकले हो।

प्रेरित पौलुस इन शब्दों को कुरिन्थुस के विश्वासियों को लिखता है, अविश्वासियों को नहीं। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि यह संदेश महत्वपूर्ण है और परमेश्वर के सन्तान को संबोधित है। हमें अपने विश्वास को परमेश्वर के वचन के अनुसार रखने के लिए निरंतर जांच करने की आवश्यकता है।

जब शिष्य, यीशु से पूछते हैं कि उनका विश्वास कैसे बढ़ाया जाए, तो यीशु सीधा उत्तर नहीं देते। लेकिन उन्होंने इसका उत्तर वास्तविक विश्वास को जीते हुए दिया (लूका 17:5)। किसी का विश्वास बढ़ाने के लिए कोई चाल या सर्वरोगहर ओषधि नहीं है। इसे केवल तभी मापा जा सकता है जब हम विभिन्न कठिनाइयों, संघर्षों और परीक्षाऔं के माध्यम से गुज़रते हैं। मसीही जीवन में सच्चा विश्वास बनाए रखने के लिए कोई छोटा रास्ता नहीं है।

हमारे विश्वास का निर्माण

जैसे अपनी मांसपेशियों को स्वस्थ बनाने के लिए हम व्यायामशाला जाते है, वैसे ही हमें अपने विश्वास को मज़बूत बनाने के लिए जीवन की परीक्षाओं और संघर्षों का उपयोग करने की आवश्यकता है। यदि हम परमेश्वर के साथ अपने संबंध को मज़बूत करना चाहते है, तो हमें अपने विश्वास के निर्माण को अपने व्यावहारिक जीवन में लागू करने की आवश्यकता है।

2 तीमुथियुस 1:12 में पौलुस कहता है, “इस कारण मैं इन दुखों को भी उठाता हूं, पर लजाता नहीं, क्योंकि मैं उसे जिस पर मैंने विश्वास किया है जानता हूं; और मुझे निश्चय है, कि वह मेरी धरोहर की उस दिन तक रखवाली कर सकता है” 

ऊपर बताई गई बातों के अलावा, दूसरे प्रकार की प्रार्थना को देखें, उत्पत्ति 28:20 में यहाँ यूसुफ परमेश्वर के सामने शर्तें रख रहा है। भले ही परमेशवर ने उसे आश्वासन दिया है कि अंत तक वह उसके पास रहेगा, यूसुफ चाहता है कि इस बात को साबित करने के लिए परमेशवर उसकी शर्तों को मान ले। लोग ऐसा  सोच सकते हैं कि जब वह मसीही जीवन में आ जाते हैं, तो सब कुछ सरल होगा। परंतु ऐसा नहीं है!

अय्यूब 7:17 में हम पढ़ते है,मनुष्य क्या है, कि तू उसे महत्व दे, और अपना मन उस पर लगाए, और प्रति भोर को उसकी सुधि ले, और प्रति क्षण उसे जांचता रहे?

गलत भविष्यवाणियाँ

झूठी भविष्यवाणी और झूठी शिक्षाएं होती हैं। हमें इन दोनों कि परख होनी चाहिए। बहुत सारे टी.वी. चैनल हैं जो हर तरह के संदेश और शिक्षाओं को फैला रहे हैं। हमें परखने की जरूरत है। सभाओं को खुश करने के लिए भाविष्यवक्ता की अपनी कल्पना से कई भविष्यवाणियां की जाती हैं।

यिर्मयाह 29:11 एक सामान्य पद है जिसे अक्सर संदर्भ से बाहर इस्तेमाल किया जाता है। इस्राइली लोग बेबीलोन में कैदी थे और कई भविष्यवक्ताओं ने भविष्यवाणी की थी कि वे ‘स्वतंत्रता’ और ‘समृद्ध भविष्य’ देखेंगे। लेकिन यिर्मयाह 23:16 में परमेश्वर कह रहा है कि भविषयसूचक संदेश उसकी ओर से नहीं है।

यशायाह 55:8-9 – 8क्योंकि यहोवा कहता है, मेरे विचार और तुम्हारे विचार एक समान नहीं है, न तुम्हारी गति और मेरी गति एक सी है।क्योंकि मेरी और तुम्हारी गति में और मेरे और तुम्हारे सोच विचारों में, आकाश और पृथ्वी का अन्तर है। 

प्रतीक्षा और कार्य

परमेश्वर की वाणी में विश्वास करना ही सच्चा विश्वास है। इसलिए, हमें परमेश्वर पर प्रतीक्षा करने की आवश्यकता है। लेकिन प्रतीक्षा के समय काम करते रहना है। अपना घर बनाएं, परिवार की देखभाल करें, उन शहरों के लिए प्रार्थना करें, जहां परमेशवर आपको ले गए हैं और धीरज रखें।

परमेशवर की योजना और उद्देश्य

परमेश्वर इस्राएलियों को 40 वर्षों तक लम्बे मार्ग से ले गया। उसका एक उद्देश्य और एक योजना थी। वह चाहते थे कि वे विनम्रता का पाठ सीखें और अपने चरित्र और जीवन के तरीके को बदलें। सच्चे विश्वास को बनाने के लिए हमारे जीवन में परीक्षाओं की अनुमति परमेशवर देता है। पौलुस, तीमुथियुस को समझता है, कि कैसे यूसुफ को अपने भाइयों और परिवारों को छुड़ाने के लिए परीक्षाओं कि प्रक्रिया से गुज़रना पड़ा। 

यही वह विचार है जिसे हम भजनसाहिता 23 में पढ़ते हैं – चाहे मैं घोर अन्धकार से भरी हुई तराई में होकर चलूं, तौभी हानि से न डरूंगा, क्योंकि तू मेरे साथ रहता है; तेरे सोंटे और तेरी लाठी से मुझे शान्ति मिलती है। 

गुज़रना महत्वपूर्ण है

इन सभी स्थितियों में हम बैठे नहीं रहते। हम आगे बढ़ते हैं। इसलिए रोने के बजाय कि ‘मुझे नहीं पता कि क्या हो रहा है, या मुझे नहीं पता कि मुझे क्या करना है’, इस रास्ते से गुज़रने में आपकी मदद करने के लिए परमेशवर से प्रार्थना करें। हाल ही में हमने देखा कि किस तरह परमेश्वर हमें कोरोना के दौरान परीक्षा की घड़ी में हमारे साथ रहे। वह अपनी योजना के अनुसार हमें आगे ले जाता है। भजनसाहिता 11:5 भी इस विचार का समर्थन करता है – यहोवा धर्मी को परखता है, परन्तु वह उन से जो दुष्ट हैं और उपद्रव से प्रीति रखते हैं अपनी आत्मा में घृणा करता है।

परीक्षा का सामना करें 

याकूब 1:2 में, हम समझते हैं, ‘जब परीक्षाएं विद्रोहियों की नाईं आएं, तो उन को न गोली मारो और न मार डालो। लेकिन उन्हें दोस्तों की तरह स्वीकार करें। परीक्षाओं की प्रक्रिया के दौरान, परमेश्वर से पूछें कि परीक्षा का सामना कैसे करें। परमेशवर आपका मार्गदर्शन करेगा। वह आपको सभी लोगों को क्षमा करने में मदद करेगा और स्वर्गीय ज्ञान को प्रदान करेगा। 

रोमियों 8:29, 2 पतरस 2:4, इब्रानियों 12:10 ये सभी वचन हमें दिखाते हैं कि परमेश्वर के पुत्र के समान कैसे परिपक्व हो सकते हैं। यह कोई आसान बात नहीं है। लेकिन जब हम परमेशवर को धन्यवाद और स्तुति करते हैं, तो हम अपने जीवन में उसके कार्य को और उसकी इच्छा को स्वीकार करते हैं।

परमेशवर कि स्तुति हमेशा करो 

आशीषों के आने से पहले ही अब्राहम ने परमेश्वर की स्तुति की। जेल से रिहा होने से पहले ही सीलास और पतरस ने जेल में स्तुति के गीत गाना आरंभ कर दिया था। एलीशा ने अपने सेवक की आंखें खोलने के लिए परमेश्वर से प्रार्थना की और परमेश्वर ने ठीक वैसा ही किया! प्रभु पर भरोसा रखें और सच्ची आस्था रखें। जिसने अब तक आपका ख्याल रखा, वही आपको आगे भी ले जाएगा। हर परीक्षा के समय में भी, परमेश्वर की स्तुति करो। वह हमें परिपक्व करेगा और सच्चे विश्वास के साथ हमारे आंतरिक मनुष्य को मज़बूत करेगा। और, यही है जो हम अपनी अगली पीढ़ी को एक विरासत के रूप में सौंपने में सक्षम होंगे।

अमीन। 

अनुवादक – बिन्दु सूसन